Yogini Ekadashi
Ashaad Krishna Paksh......... Jun - Jul
Ashaad Krishna Paksh......... Jun - Jul
Yudhishthir asked : "Hey Vaasudev, what is the name of the Ekadashi of Ashaadh Krishna paksh.Please elaborate."
Lord Krishna said: "Hey great king...!, the Ekadashi of aashad krishna paksh is known as Yogini Ekadashi.It destroys horrible sins.
It is like a ship to those who are sinking in the ocean of the world/sansaara."
King of Alkapuri, Kubera{God of wealth}, is a great devotee of Lord Shiva.He had a Yaksha, named Hemamaali, in his service, he used to provide flowers to him for the worship.
Lord Krishna said: "Hey great king...!, the Ekadashi of aashad krishna paksh is known as Yogini Ekadashi.It destroys horrible sins.
It is like a ship to those who are sinking in the ocean of the world/sansaara."
King of Alkapuri, Kubera{God of wealth}, is a great devotee of Lord Shiva.He had a Yaksha, named Hemamaali, in his service, he used to provide flowers to him for the worship.
Hemamaali's wife was Vishaalaakshi,he was addicted to his wife very much all the time.Once, Hemamaali took flowers from the Maansarovar, but stayed at his home, infatuated by his wife, and could not make it to Kuber.
Whereas Kuber was worshiping Lord Shiva in the temple and needed flowers for the worship. He waited for the delivery of the flowers till noon. When the time of worship was over Kuber, was annoyed and asked his servant:"Why is not Hemamaali coming?"
The yaksha told him: King, he is still at his home, roaming, infatuated by his wife.Angry Kuber called upon Hemamaali in his palace.Now Hemamaali was standing before Kuber.Kuber cursed him :" Hey vicious, amoral man !you have insulted the Lord ,I curse you to have leprosy on your body and you be separated from your beloved and go somewhere else."
As Kuber said this, Hemamaali fell from that place.His body was paining because of leprosy, but as he did bhakti of Lord Shiva, he did not lose his memory.Hence he went at the top of the mountains of Merugiri. Where he saw Saint Maarkanday ji, he greeted him. Saint asked him, "How did you get this disease?"
Yaksha Hemamaali said : "Hey sage, I am a servant of Kuber, my name is Hemamaali.I used to provide flowers from Maansarovar to Kuber for the worship of Lord Shiva.
The yaksha told him: King, he is still at his home, roaming, infatuated by his wife.Angry Kuber called upon Hemamaali in his palace.Now Hemamaali was standing before Kuber.Kuber cursed him :" Hey vicious, amoral man !you have insulted the Lord ,I curse you to have leprosy on your body and you be separated from your beloved and go somewhere else."
As Kuber said this, Hemamaali fell from that place.His body was paining because of leprosy, but as he did bhakti of Lord Shiva, he did not lose his memory.Hence he went at the top of the mountains of Merugiri. Where he saw Saint Maarkanday ji, he greeted him. Saint asked him, "How did you get this disease?"
Yaksha Hemamaali said : "Hey sage, I am a servant of Kuber, my name is Hemamaali.I used to provide flowers from Maansarovar to Kuber for the worship of Lord Shiva.
Once I was infatuated by my wife so much that I compltely forgot about the time and my duties and thats why King of Kings Kuber gave me this curse of having thise disease and I am separated from my beloved.Hey saint, great souls are always keen for the uplifting of the fallen, please advice something to a culprit like myself."
Maarkanday ji said : "You have spoken the truth, let me suggest you something then.You keep the fast of the Ekadashi of Aashad krishna paksh, your leprosy will be cured by that certainly."
Lord Shri Krishna said : "Hey King, with the advice of Maarkanday ji , he kept the fast of Yogini Ekadashi, and his leprosy got cured with its effect.
And hence he became happy again."
"Hey king, if one offers food to 80,000 brahmins, the same effect a man gets by keeping the fast of Yogini Ekadashi.It proved one with good karma and sins are destroyed by this fast.One who reads and hears this glory of Yogini Ekadashi, all his sins are washed away."
योगिनी एकादशी
युधिष्ठिर ने पूछा : वासुदेव ! आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले : नृपश्रेष्ठ ! आषाढ़ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार ज्येष्ठ ) के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है। संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है ।
अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहनेवाले हैं । उनका ‘हेममाली’ नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था । हेममाली की पत्नी का नाम ‘विशालाक्षी’ था । वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था । एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन में न जा सका । इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिव का पूजन कर रहे थे । उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की । जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा : ‘यक्षों ! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है ?’
यक्षों ने कहा: राजन् ! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है । यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलवाया । वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया । उसे देखकर कुबेर बोले : ‘ओ पापी ! अरे दुष्ट ! ओ दुराचारी ! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा ।’
कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया । कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित था परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई । तदनन्तर वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया । वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन हुआ । पापकर्मा यक्ष ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया । मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा : ‘तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया ?’
यक्ष बोला : मुने ! मैं कुबेर का अनुचर हेममाली हूँ । मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था । एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा, अत: राजाधिराज कुबेर ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया । मुनिश्रेष्ठ ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये ।
मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ । तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो । इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा ।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत किया, जिससे उसके शरीर को कोढ़ दूर हो गया । उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण सुखी हो गया ।
नृपश्रेष्ठ ! यह ‘योगिनी’ का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करनेवाले मनुष्य को मिलता है । ‘योगिनी’ महान पापों को शान्त करनेवाली और महान पुण्य फल देनेवाली है । इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है
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