Padmini Ekadashi Purushottam Shukla Paksh
Ekadashi of extra{purushottan/mallonda} month's Shukla pakhsha
Arjuna said : O, Lord, now please let me know about the Ekadashi of extra{purushottan/mallonda} month's Shukla pakhsha,
What is its name, what is its process, which deity is worshiped in this Ekadashi.?"
Lord Shri Krishna said:" Hey partha, the Ekadashi of shukla paksha, of the extra month of purushottama, is known as Padmini Ekadashi.
What is its name, what is its process, which deity is worshiped in this Ekadashi.?"
Lord Shri Krishna said:" Hey partha, the Ekadashi of shukla paksha, of the extra month of purushottama, is known as Padmini Ekadashi.
With its fast, one attains Vaikuntha after his life.It is the destructor of all the sins and provides one with Bhakti and deliverance.Do listen to its glory,
the fast should be started on the dashmi only.On the day of Ekadashi, after purifing the body, one should go to a holy place.There one should have a bath with,
cowdung, mrittika{clay}, seasama, kusha, Amla.Before having bath, one should apply mrittika{clay} over his body and pray" Hey mrittika, namaskar to you, let my body
be purifeied with your touch.you came into existence with the effect of all the herbs, you purify the whole earth, plaese purify me too.You were born with the spit
of Brahma, please purify me.Hey Jagannaath!, wearing shankha, chakra and gadaa, let me have a permission to have a bath."
Afterwords if holy pilgrims are not available, then one should meditate on Varuna{God of water}, and reciting his mantra, one should have a bath in a pond."
After the bath, one should wear beautiful, clean clothes and do, Sandhya and tarpan, and afterwords and should go to the temple and worship the Lord with incense, kesar, lamp,
flowers etc.Hence one should dance and sing in front of the Lord.
In front of the Lord, one should listen to the Puraana stories along with the devotees.One should keep the fast of Padmini Ekadashi, without drinking water.
If one does not have the power to keep the fast without water, then he should keep the fast with drinking the water or refreshment. In the night time one should do dancing and singing
and meditation of the lord, and stay awake.Every hour one should pray to Lord Vishnu or Lord Shiva.
In the first pehar{Indian time, day is divided into pehars} one should offer coconut, in the second pehar Bilva fruit , in the third Sita fruit {custard apple}, in the fourth
betalnut, oranes should be offered to the lord . In all the 4 pehars of the night, one gets the effect of doing agni homa yagna, in the second pehar, the efect of vajpayee yagna, in the third
ashvamegha yagna and in the fourth raajsuya yagna is achieved.There is no yagna, pilgrim, charity greater than this fast.With keeping of the fast of Ekadashi, one gets the effect of doing all the
pilgrims and yagnas.
Hence one should stay awake till morning and after having bath in the morning one should offer food to the brahmins.So all those who keep the fast with this process, attain several pleassures in this world
and attain Vaikuntha after this life, their whole birth becomes successful.Hey partha, I have told you the process of this fast.
Now let me tell you the story of those who have already kept this fast in the past. This beautiful story was told by Pulatsyaji to Naaradji : Once Kaartaveeraya imprisoned Raavan.Pulatsayaji requested Kaarataveeraya
to release Raavan. Hearing this Naaradji asked Pulatsayaji, Raavan, who conquered all the dieties including their king Indra, how was he conquered by Kaartaveeraya, please elaborate."
Pulatsayaji answered : Hey Naaradji there was a king named Kaarataveeraya . He has 100 wives but, none of them had any deserving son which could be his heir.The king called
with respect the brahmins and did lots of yagnas for having a son but all of them in vein. As for a sad person all the sensual pleassures seem to be not untertaining,
likewise he did not like his kingdom at all.Hence he went to the jungles for the meditation, as he thought that it will solve his problem for the heir.His wife {daughter of king Harishchandra}
too went along with him, leaving all her ornaments and expensive clothes to the mountain of Gandhamaadan.There they meditated for 10,000 years but could not get what they wanted.
There remained only bones in the body of the king, seeing this queen Praamada asked the great Sati Anusuya : "We have been meditating for 10,000 years now, there are only bones left in the body of
my husband , we are meditating to have a son, why is our wish not fulfilled yet, why is the Lord not pleased yet?"
Sati Anusuya said: "In the extra month, Purushottam, there fall two Ekadashis, one Padmini, of shukla pash and the other Parma Ekadasi in the krishna paksh{dark fortnight}.With its fast and jaagran in the night,
Lord will certainly grant you a son."
Sati Anusuya told her the proces of the fast and night awakening, and the queen did just that .Now lord Vishnu was pleased and appeared in front of them and asked them for a wish.
The queen:Please grant the wish of my husband."
Lord Vishnu said to the queen:" Hey Praamada, Purushottam mnth is very dear to me.In it Ekadashi date is very dear to me.you kept this fast and night jaagran with the right process, I am very pleased with you."
Then lord said to the king:"Ask for a wish ,king, your wife has pleased me"
Hearing the sweet voice of the lord King said: O Lord, please give me a son,greates of all, worshiped by all, who cannot be conquered by the demons, men, anyone except for you."
After saying "Tathaastu" {let it be } and dissapeared.King and the queen came back to their kingdom. Now They had a son named Kaartaveeraya, who could not be conquered by anyone except Lord himself.That is the reason he
conquered Raavan too, it was the effect of the Ekadashi of Padmini.Saying this Pulatsaya ji left.
Lord Sri Krishna said:"Hey son of Pandu, Arjun, I have elaborated the story of shukla paksha Ekadashi, of the extra month Purushottam. One who keeps this fast, attains Vaikuntha."
पद्मिनी एकादशी
अर्जुन ने कहा: हे भगवन् ! अब आप अधिक (लौंद/ मल/ पुरुषोत्तम) मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के विषय में बतायें, उसका नाम क्या है तथा व्रत की विधि क्या है? इसमें किस देवता की पूजा की जाती है और इसके व्रत से क्या फल मिलता है?
श्रीकृष्ण बोले : हे पार्थ ! अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देनेवाली है, उसका नाम ‘पद्मिनी’ है । इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है । यह अनेक पापों को नष्ट करनेवाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करनेवाली है । इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरु करना चाहिए । एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पुण्य क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए । उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए । स्नान करने से पहले शरीर में मिट्टी लगाते हुए उसीसे प्रार्थना करनी चाहिए: ‘हे मृत्तिके ! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ । तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो । समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करनेवाली, तुम मुझे शुद्ध करो । ब्रह्मा के थूक से पैदा होनेवाली ! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो । हे शंख चक्र गदाधारी देवों के देव ! जगन्नाथ ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये ।’
इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए । स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेघ, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए । उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें ।
भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए । अधिक मास की शुक्लपक्ष की ‘पद्मिनी एकादशी’ का व्रत निर्जल करना चाहिए । यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए । रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए । प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए ।
पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए । इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेघ यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है । इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है । एकादशी का व्रत करनेवाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है ।
इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए । इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णु के परम धाम को जाते हैं । हे पार्थ ! मैंने तुम्हें एकादशी के व्रत का पूरा विधान बता दिया ।
अब जो ‘पद्मिनी एकादशी’ का भक्तिपूर्वक व्रत कर चुके हैं, उनकी कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो । यह सुन्दर कथा पुलस्त्यजी ने नारदजी से कही थी : एक समय कार्तवीर्य ने रावण को अपने बंदीगृह में बंद कर लिया । उसे मुनि पुलस्त्यजी ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया । इस घटना को सुनकर नारदजी ने पुलस्त्यजी से पूछा : ‘हे महाराज ! उस मायावी रावण को, जिसने समस्त देवताओं सहित इन्द्र को जीत लिया, कार्तवीर्य ने किस प्रकार जीता, सो आप मुझे समझाइये ।’
इस पर पुलस्त्यजी बोले : ‘हे नारदजी ! पहले कृतवीर्य नामक एक राजा राज्य करता था । उस राजा को सौ स्त्रियाँ थीं, उसमें से किसीको भी राज्यभार सँभालनेवाला योग्य पुत्र नहीं था । तब राजा ने आदरपूर्वक पण्डितों को बुलवाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किये, परन्तु सब असफल रहे । जिस प्रकार दु:खी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार उसको भी अपना राज्य पुत्र बिना दुःखमय प्रतीत होता था । अन्त में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तपस्या करने के लिए वन को चला गया । उसकी स्त्री भी (हरिश्चन्द्र की पुत्री प्रमदा) वस्त्रालंकारों को त्यागकर अपने पति के साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गयी । उस स्थान पर इन लोगों ने दस हजार वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि प्राप्त न हो सकी । राजा के शरीर में केवल हड्डियाँ रह गयीं । यह देखकर प्रमदा ने विनयसहित महासती अनसूया से पूछा: मेरे पतिदेव को तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गये, परन्तु अभी तक भगवान प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे मुझे पुत्र प्राप्त हो । इसका क्या कारण है?
इस पर अनसूया बोली कि अधिक (लौंद/मल ) मास में जो कि छत्तीस महीने बाद आता है, उसमें दो एकादशी होती है । इसमें शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘पद्मिनी’ और कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘परमा’ है । उसके व्रत और जागरण करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे ।
इसके पश्चात् अनसूयाजी ने व्रत की विधि बतलायी । रानी ने अनसूया की बतलायी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया । इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुए और वरदान माँगने के लिए कहा ।
रानी ने कहा : आप यह वरदान मेरे पति को दीजिये ।
प्रमदा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले : ‘हे प्रमदे ! मल मास (लौंद) मुझे बहुत प्रिय है । उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है । इस एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधिपूर्वक किया, इसलिए मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ ।’ इतना कहकर भगवान विष्णु राजा से बोले: ‘हे राजेन्द्र ! तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर माँगो । क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझको प्रसन्न किया है ।’
भगवान की मधुर वाणी सुनकर राजा बोला : ‘हे भगवन् ! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये ।’ भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गये । उसके बाद वे दोनों अपने राज्य को वापस आ गये । उन्हींके यहाँ कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे । वे भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे । इन्होंने रावण को जीत लिया था । यह सब ‘पद्मिनी’ के व्रत का प्रभाव था । इतना कहकर पुलस्त्यजी वहाँ से चले गये ।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे पाण्डुनन्दन अर्जुन ! यह मैंने अधिक (लौंद/मल/पुरुषोत्तम) मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कहा है । जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह विष्णुलोक को जाता है
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