नाद का मूल स्वरूप ऊँकार माना जाता है!
ऊँ ही नाद ब्रह्म है और ऊँ ही परबीजाक्षार है!
ऊँ की पूरी श्रद्धा- भक्ति के साथ दीर्घोच्य स्वर में उच्चारण करना चाहिए!इसके उच्चारण से कंपन शक्ति उत्पन्न होती है और मन में एकाग्रता, वाणी में मधुरता और शरीर के रोम-रोम में स्फूर्ति का संचार होता है!
ऊँ का उच्चारण सात,ग्यारह,इक्कीस अथवा इक्यावन बार करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है!
ऊँ का सामूहिक रूप से किया गया उच्चारण अधिक प्रभावकारी होता है!
गोपथ ब्राह्मण के अनुसार किसी मंत्र का उच्चारण करते समय आरंभ में यदि ऊँ न लगाया जाए तो मंत्र निष्फल हो जाता है!
मंत्र के आरंभ में ऊँ लगाने से मंत्रोच्चार से प्राप्तगुना होने वाली शक्ति कई गुना बढ़ जाती है!
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