शब्द अमर है
.आचार्या चाणकय ने कहा की ' प्रियवादनी न शत्रु:'
अर्थात प्रियवादी का कोई शत्रु नही होता ! चाणकया का यह सूत्र वाक्य संपूर्ण भारतीय जीवन - व्यवहार का सार है!
जब हम प्रियभाषी होंगे तो कटुता, अहंकार और घृणा हमारे मन मे नही आएगी! इससे समाज़ मे सोहार्द, आपसी सहयोग और करुणा का विकास होगा! मानव जीवन 'स्व' को भोगने के लिए नही है! उसका एक महान दायत्व शेष समाज के प्रति भी है!
हमारे मनीषी कहते हैं की शब्द अमर है! बात अवास्तविक भी लग सकती है, लेकिन यह यथार्थ है! शब्दों के अपने संस्कार होते हैं. उनकी अपनी चुंबकिया परिधि होती है, वे प्राण है! अदृश्य होने पर भी वे सदा हमारे चारो ओर भ्रमण करते हैं! जिस परिवार मे कोई व्यक्ति कटु भाषा का प्रयोग करता है,वह परिवार उन्नति और उत्तम संस्कारों से वंचित रहता है! उस घर के परिवेश मे कटु शब्द सक्रिया रहते हैं और वे अव्यक्त होने पर भी परिजनो के मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं!इनका नकारत्यमक प्रभाव व्यक्ति को कुंठीत करता है,यथार्थ से दूर ले जाता है और उसे अपने दावित्या बोध से वंचित करता है!
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