हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार महाकुंभ में स्नान करने से मनुष्य जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति या मोक्ष हासिल कर लेता है। इस मान्यता की वजह से ही करोड़ों की संख्या में आम जन महाकुंभ में शामिल होते हैं। महाकुंभ सिर्फ चार जगहों पर आयोजित होने के पीछे मिथक यह है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को जब विष्णु के वाहन गरुड़ पर रखकर राक्षसों से बचाने के लिए सुरक्षित स्थान पर ले जाया जा रहा था तो चार जगहों प्रयाग, हरिद्वारा, नासिक और उज्जैन में अमृत का एक-एक बूंद टपक गया था। इस अमृत का लाभ उठाने के लिए हर 12 साल पर इन स्थलों पर महाकुंभ का आयोजन होता है। इसकी चर्चा भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में की गई है।
कुंभ मेले के इस आयोजन के पीछे बुराई पर अच्छाई की जीत और दुनिया में समृद्धि के चक्र का शुरू का प्रतीक भी है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि गंगा में स्नान के लिए महाकुंभ से बेहतर अवसर और कोई नहीं हो सकता। हालांकि, यह सिर्फ एक धार्मिक मेला है लेकिन इसे देश भर के संतों के जमावड़े का भी एक बड़ा अवसर माना जाता है। कुंभ मेले के दौरान विभिन्न संप्रदाय या अखाड़े से जुड़े हिंदू संत जुटकर ग्रंथों पर चर्चा करते हैं, अपने भक्तों से मिलते हैं और अपने अखाड़े में नए संतों का प्रवेश भी करते हैं।
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