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Wednesday, February 16, 2011

5. Trayodashi/Pradosh fast falling on a Thursday.

5. Trayodashi/Pradosh fast falling on a Thursday.


5. Trayodashi/Pradosh fast falling on a Thursday.

Once upon a time , king of deities Indra and Vritasura had a war.The army of the diesties ,just defeated the army of the demons.Seeing his army like this, Vritasura presented himself for the war with much anger.That demon took a huge, frightening form, with his powers.Seeing his form , the diesties called upon their Guru Vrihaspati { Jupiter } , with the suggestion of Indra.Their Guru came there and told them the story of Vritasura.He said '' Hey king of deities ,Indra, this demon Vritasura was a very great ascetic .He has done great austerities on a mountain named Gandharv Maadan and has pleased Lord Shiv with his austerities.

''In his past birth, he was a king named Chitraratha.This jungle nearby you was a part of his kingdom, nowadays sages live there.Once Chitraratha went to Kailash mountain .When he saw Lord Shiv and Goddess Paarvati sitting together , Paarviti ji sitting on the left side of Lord Shiv, he laughed a bit and spoke , '' Hey Almighty , !! we creatures live in the darkness, that is why we are attracted towards women, but I have never seen in divine realms that a woman is sitting with a man so close in the court.''

Hearing him, the omnipresent Lord Shiv, smilingly answered him, ''Hey king, the physical dimentions are different.I have drank the biggest, deadly, deathlike poison, still you think that I am an ordinary person and laugh at me ?''Goddess Paarvati became very angry and said to Chitraratha '' Hey villain, you have insulted the omnipresent Maheshwar with myself, you will have to pay for your deeds.''

''In this court of Lord Shiv, present are the knowers of the secrets of the universe.The great sages like Sanatkumars are also included.These great sages have no ignorance left within themselves, still they are eager to worship Lord Shiv.Hey fool...! you are so clever , hence I will teach you a lesson that you will not be able to laugh at saints again.I curse you that you be transformed into a demon and fall off your plane and go back to the earth.''


When the mother of the world cursed Chitraratha, he instantly became a demon and fell off his plane.One sage named Tavastha created him and now he is known as Vritasura , he is a devotee of Lord Shiv and is a celibate .Hence you will never be able to conquer him ever.Hence on my suggestion , you keep the fast of Trayodashi / Pradosh , so that you can win this powerful demon.''


Hearing the words of their Guru , deities became very happyand kept the fast of Trayodashi and defeated Vritasura and started living happily in heaven.''

Aum Namah Shivaya


शत्रु विनाशक भक्ति प्रिय , व्रत है यह अति श्रेष्ठ।
वार मास तिथि सब भी से , है यह व्रत अति ज्येष्ठ।।

सूत जी ने कहा '' एक बार इन्द्र और वृतासुर में घोर युद्ध हुआ ।उस समय देवताओं ने दैत्य सेना पराजित कर दी। अपना विनाश देखकर वृतासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध करने के लिए उद्द्यत हुआ। मायावी असुर ने आसुरी माया से भयंकर विकराल रूप धारण किया ।उसके स्वरुप को देखकर इन्द्रादिक सब देवताओं ने इन्द्र के परामर्श से परम गुरु वृहस्पति जी का आवाहन किया , गुरु तत्काल आकर कहने लगे - '' हे देवेन्द्र , अब तुम वृतासुर की कथा ध्यानमग्न होकर सुनो - वृतासुर प्रथम बड़ा तपस्वी कर्मनिष्ठ था , इसने गन्धर्व मादन पर्वत पर उग्र ताप करके शिव जी को प्रसन्न किया था। पूर्व समय में यह चित्ररथ नाम का राजा था , तुम्हारे समीप जो वन है वह इसी का राज्य था। अब साधू प्रवृत्ति विचारवान महात्मा उसमें आनंद लेते हैं। एक समय चित्ररथ स्वेछा से कैलाश पर्वत पर चला गया।


भगवान् का स्वरुप और बाएँ भाग में जगदम्बा पार्वती जी को देखकर चित्ररथ हंसा और हाथ जोड़कर भगवन शिव शंकर से बोला - हे प्रभो ! हम माया से मोहित हो विषयों में फंसे रहने के कारन स्रियों के वशीभूत रहते हैं किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ की स्त्री भी सभा में बैठे।'' चित्ररथ के ये वचन सुनकर सर्वव्यापी भगवान् शिव हंसकर बोले -'' हे राजन ! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है ।मैंने मृत्युदाता काल कूट महविश का पान किया है फिर भी तुम साधारण जनों की भांति मेरी हंसी उड़ाते हो ।तभी पार्वती जी क्रोधित हो चित्ररथ की और देखती हुयी कहने लगी - '' ओ दुष्ट ! तुने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ मेरी हंसी उड़ाई है , तुझे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ेगा।

उपस्थित सभा में महँ प्रकृति शास्त्र के जानकार हैं और सनत्कुमार हैं ।ये सर्व अज्ञान के नष्ट हो जाने पर भी शिव भक्ति में तत्पर हैं , अरे मूर्खराज , तू अति चतुर है अतैव तुझे मैं वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतो का मज़ाक का दुसाहस नहीं करेगा ।अब तू दैत्य स्वरुप धारण कर विमान से नीचे गिर , तुझे मैं श्राप देती हूँ अभी पृथ्वी पर चला जा ।''अब जगदम्बा भवानी ने चित्ररथ को ये श्राप दिया तो वह तत्क्षण विमान से गिर राक्षस योनी को प्राप्त हुआ ।तवाष्ठअ नामक ऋषि ने उसे अपने तप से उत्पन्न किया और वही वृतासुर है। और ये शिव भक्ति ब्रह्मचर्य कि पलना करते हुए करता है इस कारन तुम उसे जीत नहीं सकते ।इसलिए मेरे परामर्श से तुम प्रदोष/त्रयोदशी व्रत करो जिससे महाबलशाली दैत्य पर विजय प्राप्त कर सको ।गुरुदेव के वचनों को सुकर सभी देवता प्रसन्न हुए और गुरूवार त्रयोदशी प्रदोष व्रत को विधि विधान से किया। राक्षस वृतासुर पर विजय प्राप्त कर देवता सुखपूर्वक स्वर्ग में रहने लगे।


ॐ नमः शिवाय

October 19, 2010 ·

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